सासुमा! एक संस्मरण !
अजीब रिश्ता रहा हम दोनोका ! किसी गाफिल पल उन्हें मुझपे बेहद प्यारभी आता और फिर अचानक अजीबसा संताप !
एक विचित्र वाक़या घटा और मुझे उनके बारेमे अलगसे कुछ लिखनेका मन कर गया। उसका बयान नही करूंगी क्योंकि ये संस्मरण बेवजह विस्तारमे चला जाएगा।
१९९३ वे की एक शाम। केवल एक ही रोज पूर्व मेरे पती की मुम्बई पोस्टिंग हुई , मतलब वे अपना पदभार स्वीकारने मुंबई चले गए थे। महाराष्ट्र पुलिस अकादमी के संचालक पदसे, तबादला हो, मध्यवर्ती सरकारमे डेप्युटेशन पे। पदभार मुम्बई मे संभालना था। आर्डर मौखिक थे। सरकारी छुट्टियाँ थी, और कहा गया था की, वो मुम्बई पोहोंच जायें और जिस दिन दफ्तर मे पदभार लेने आयेंगे, लिखित आर्डर दे दिए जायेंगे।
उनका समारोप समारंभ हो गया था। मुम्बई मे उस पोस्ट के लिए मकान भी मौजूद था। मैंने सोच रखा था कि, जैसेही इन्हें आर्डर मिलेंगे मै सामान बाँधना शुरू कर दूँगी।
उस शाम की जिसकी मै बात कर रही हूँ, मेरी एक बोहोत करीबी सहेली मुझे अपने घर ले जाने आयीं। उनका घर शेहेरसे कुछ २५ किलोमीटर की दूरीपे था।
मै उनके साथ जानेके लिए अपने पहली मंज़िल के कमरेसे नीचे उतारी तो देखा, बीजी एक महिला से अपने पैरकी मालिश करवा रहीँ थीं।वो महिला हमारे घर दिनमे आके झाडू लगा दिया करती तथा घरके पिछवाडे बने सरकारी कमरोंमे रहती। बड़ा-सा बरामदा था....वहीँ पे एक सोफेपे वे बैठीं थीं।
उनका कमरा मैंने ख़ास नीचेके मंज़िल पेही रखा था। एक तो वो नाबीना हो चुकीं थीं। दूसरा , फोन के अर्दली उस कमरेके बाहर ही बैठते थे। और सबसे बड़ा कारन, उनका ओस्टोपोरोसिस। पत्थरकी, बनी, पुराने ज़मानेकी बनी, ऊँची, ऊँची सीढियाँ चढ़ना उनके बसका ही नही था। मै मनही मन शुक्रगुजार थी कि, नीचे एक अच्छा कमरा था, वरना मैंने ऐसे घर देखे थे जहाँ सारे शयनकक्ष ऊपर और बैठक, खानेका कमरा तथा रसोई नीचे।
सहेलीके साथ बाहर जानेके पहले मुझे पता नही क्या सूझ गयी जो मैंने बीजीसे कहा," बीजी आप जब बाहर घूमने जाएँ तो घरके अहातेमेही घूमना। आज मै घरपे नही हूँ। विमलाके साथ उनके घर जा रही हूँ। दो घंटों के भीतर लौट्ही आऊँगी।"
बीजी ने जवाबमे कहा," ना...मुझे तो अकादमी के अहातेमे घूमना है। यहीँ के यहीँ घूमनेमे ना तो मुझे मज़ा आता है ना घुमानेवालेको।"
ऐसा नही कि, वे कभी घरका अता छोड़ बाहर घूमने नही जातीं थीं, लेकिन ऐसे समय मै घरपे मौजूद रहती। घरके बाहरका अहाता ज़रा पथरीला था। उनके गिरनेका मुझे बेहद भय रहता। उन्हें मधुमेह्का रोग्भी था। ज़ख्म ठीक होना मुश्किल ......मधुमेह्के कारन ही वे रेटिनल detachment की शिकार हो नाबीना हो गयीं थीं। उनपे हर मुमकिन सर्जरी हो चुकी थी...केवल भारत के नहीं, दुनियाके बेहतरीन नेत्र तग्यसे।
मैंने फिर एकबार गुहार लगाई," बीजी, सिर्फ़ आजके दिन...मुझे विमलाके बगीचे का landscaping हर हालमे आज पूरा करना है....सिर्फ़ आजके दिन...आपको पता है, मै इसतरह आपको कभी नही टोकती...!"
मेरे साथ विमलाने भी उनसे वही कहा...वो हलकेसे हंस दी और बोली," चलो विमला, तुम कहती हो तो मान लेती हूँ...!"
मै विमलाके साथ निकल पड़ीं। उन दिनों मोबाइल फोन तो थे नही! हम दोनों उसके घरके गेट्स अन्दर आही रहे थे कि, अन्दर फोन की घंटी सुनाई पड़ीं। जबतक विमला अन्दर गयीं, वो बंद हो गयी। विमला फोनसे अलग होनेही वाली थीं, कि मैंने उसे टोक दिया," विमला, ये फिरसे बजेगा...रुको कुछ पल..." मेरा इतना कहनाही था कि, फोन बज गया। विमलाने उठा लिया....पलट के मुझे बोलीं," तुम्हारे लिए है...तुम्हारे घरसे.....अर्दली बोल रहा है....कुछ घबराया-सा है॥"
मैंने लपक के फोन अपने हाथ मे ले लिया....दूसरी ओरसे आवाज़ आयी," माताजी गिर पड़ीं हैं.....घरमेही....आप तुंरत आ जाईये..."
मैंने उसी फोनसे एक डॉक्टर दोस्त का नंबर घुमाते हुए विमलाको स्थिती बता दी...उसी डॉक्टर से इल्तिजा कर दी कि एक अम्ब्युलंस तुंरत घर भेज दें, तथा वहाँ के एक सबसे बेहतर अस्पताल मेके , अस्थि तज्ञ को इत्तेला देके कमरा बुक कर लें.......अस्थी तज्ञ जानेमानेही थे, क्योंकि मै बीजीको नियमित रूपसे चेक उप कराने ले जाया करती या कई बार वो घर पे आ जाया करते।
मै जबतक घर पोहोंची, अम्ब्युलंस हमारे फमिली डॉक्टर के साथ हाज़िर थी। बीजीको लेके मै अस्पताल पोहोंच गयी। मुझे आजतक समयका भान नही....कब उनका x-ray लिया...कब डॉक्टर ने अपना निदान बताया...मेरे पतीको कब और किसने ख़बर की...वो उसी रात आ गए या अगले दिन.....
हाँ ! निदान याद है," उनकी हिप बोन टूट गयी है....हड्डी टूटने के कारण वो गिरीं....गिरनेके कारण हड्डी नहीं टूटी....लेकिन वो बिना अपनी लकडी या किसीका सहारा लिए, तेजीसे चलीं हैं.....इतना आपका अर्दली मुझे बता चुका है....उन्हें घूमने जानेकी जल्दी थी....आपके घर लौटनेसे पहले वे घूमना चाह रहीँ थीं...अर्द्लीको उन्हों ने बर्फ का ठंडा पानी लाने भेजा...लेकिन उन्हों ने उसके लौट नेका इंतज़ार नही किया....अपने कमरेसे उसे आवाज़ें लगा, अकेलीही आगे बढ़ गयीं और गिर गयीं..."
मै इस बातको नकार भी नही सकती थी...नाही किसी अर्दलीपे नाराज़ हो सकती थी....सभी बेहद भरोसेमंद थे...और बीजी ख़ुद ये बात स्वीकार कर चुकी थीं... मेरे बच्चे भी घरपे थे.....बेटीने उन्हें गिरते समय देखा था....वो उनके पास दौड़ी तबतक देर हो चुकी थी....
मेरे आगे दो पर्याय रखे गए," सर्जरी के बिना हिप बोन जोड़ नही सकते......सर्जरी मे क्या यश मिलेगा येभी नही कह सकते....सर्जरी नही की, तो वे कभी चल नही पाएँगी...उन्हें बेड सोर्स हो जायेंगे...तथा ज़ख्म ठीक ना होनेके कारण अन्य कई complications ...आप निर्णय ले सकती हैं?"
मनमे आया....हे इश्वर ! येभी कोई पर्याय हैं???मै डॉक्टर से क्या कहूँ?? मैंने असहाय चेहरेसे कमरेमे इकट्ठे हुए अन्य डॉक्टर मित्रों तथा, मेरी दो तीन सहेलियों कि ओर देखा.....कमरेमे पूर्ण स्तब्धता थी.....एक तरफ़ कुआँ दूसरी ओर खाई....मैंने क्या तय करना चाहिए...? मेरे पती होते तो क्या तय करते???
लेकिन मुझे तय करनेकी ज़रूरत नही पड़ीं....ख़ुद डॉक्टर ने कह दिया," मै आपकी समस्या समझ सकता हूँ.....आपके पती को ख़बर भेज दी गयी है..लेकिन मेरी सलाह होगी, सर्जरी बेहतर पर्याय है..."
मैंने केवल गर्दन हिला दी...मेरे हाथमे बीजीका हाथ था, जो उन्हों ने कसके पकडा हुआ था...याद आ रहा है कि मैंने उनसे पूछा,' बीजी, मै दो मिनिट मे बाथरूम हो आऊँ??"
उन्हों ने औरभी कसके हाथ थाम लिया और कहा ," नही...तुम मुझे एक पलके लिएभी मत छोड़ना....मेरा बेटा हो ना हो, तुम नही हिलोगी....मुझे और किसीपे विश्वास नही..."
सुननेवाले किंचित हैरान हो गए, क्योंकि बीजीका मिजाज जानते थे....लेकिन विमला और उसके पती नही....उनके चेहरेपे एक विलक्षण शांती थी....विमलाने केवल इशारा किया....जैसे कह रही हो....यही सही है....
मुझे याद नही पड़ रहा कि मै बाथरूम कब गयी....जब गयी तब बीजीका हाथ किसने थामा...
मुझे आज याद नही कि, मेरे पती कब पोहोंचे.....दूसरे दिन सुबह??उसी रात?? शायद उन्हें पूछ लूँ तो बता देंगे...पर क्या फर्क पड़ता है ?
मुम्बई से एक बेहतरीन सर्जन, जो इत्तेफ़ाक़्से, भारत आए हुए थे( थे तो वो भारतीय ही), अपने साथ लेते आए....जहाँ हम थे वो महानगर नही था....उसका ये एक फायदा था, कि अस्पताल से जुड़े ना होते हुए भी , उस अस्थी तज्ञ को, उस अस्पताल के ओपरेशन थिएटर मे सर्जरी करनेकी इजाज़त मिल गयी.....सर्जरी शुरू हो गयी...अव्वल तो मै घंटों बाहर खडी रही...फिर एक सहेलीने ज़बरदस्ती की, के कुछ देर मै घर चली जाऊँ......वो बीजी को दाखिल किए दूसरा दिन था??या तीसरा ? वो कब हुआ जब मै उनके पलंग के पास खडी जारोरार रो रही थी...? जब किसीने मुझे धाडस बंधाया था...? कोई उनके मूहमे जूस डाल रहा था??
मै घर तो गयी, लेकिन कितनी देरके लिए...? मुझे कब वो ख़बर मिली कि वो नही रहीँ??के अत्याधिक रक्त स्त्राव होनेके कारण उनकी मृत्यु ओपरेशन टेबल पेही हो गयी??खूनकी अनगिनत बोतलें चढीं लेकिन मधुमेह्के कारण रक्त स्त्राव रुकाही नही??के देखनेवालों ने कहा, सर्जरी तो अप्रतीम हुई...गज़ब हाथ था उस इंग्लॅण्ड से आए सर्जन का...लेकिन किस्मत देखो....!
उनका अन्त्य विधी उसी शाम हो गया?? या दूसरे दिन?? दूसरेही दिन...क्योंकि माँ, पिताजी तथा हमारे अन्य कुछ रिश्तेदार पधार गए थे....?नही याद आ रहा.... मुझे तो येभी नही याद रहा कि बच्चे भी घरमे हैं....या थे....इस वक्त लिख रही हूँ तो याद आ रहा है कि बच्चे तो घरमेही थे....बिटिया ९ वी क्लास मे और बेटा ७ वी क्लास मे....
सोमवार, 23 फ़रवरी 2009
सासू माँ...संस्मरण २
Saturday, February 21, 2009
इस घटनाके बाद दिन बीत ते गए....पतीने बता दिया की उन्हों ने किसी कारन मुम्बई मे पदभार सम्भालाही नही....उन दिनों वे तकरीबन एक माह बिना किसी पदके रहे....औए उनकी दोबारा अकादमी मेही पोस्टिंग हो गयी...एक हफ्तेके अन्दर पुलिस सायन्स कांग्रेस का आयोजन करना था...ओल इंडिया स्तर का आयोजन था....वोभी सफल हो गया...एक दिन मै किसी कारन, मेरे सहेली विमला और उसके पतीस मिलने उनके घर गयी थी...याद नही कि ,किस सन्दर्भ मे ये बात छिडी जो मै लिखने जा रही हूँ...जिसने मुझे स्तंभित कर दिया और इस्क़दर असहायभी....! लगा काश यही बात वो खुले आम, अपने मृत्यु के पूर्व मुझसेही नही, मेरे पतीसे भी कह देतीं....जो उन्हों ने विमला तथा उनके पतीसे कुछही रोज़ पहले कही थी...वो गिरीं उसके केवल ४ दिन पूर्व...!विमला तथा उनके पतीसे वे खुलके बात किया करतीं ....मेरी भी कोशिश रहती कि कुछ लोग हों जिनसे वे खुलके बतियाँ सकें....ऐसेमे अक्सर मै वहाँसे हट जाया करती...विमलाके पती मुझसे बोले, " जानती हो वे मुझसे क्या बोलीं???"" नही तो...! मुझे कैसे पता होगा ??"मैंने जवाब दिया...विमलाके पती बोले," उन्होंने कहा, कि, मैंने इस बहू के साथ पहले दिनसे बेहद नाइंसाफी की है....अपनेही बेटे का घर तोडके रख देनेमे कोई कसर नही छोडी....जब कि इसने मेरी सबसे अधिक खिदमत की.....इसके चरित्र पे एकबार मेरे बेटेने लांछन लगाया था....और मैंने डंके की चोटपे कहना चाहा था,कि मुझपे लांछन लग सकता है, पर इस औरत पे नहीं....सवाल ही नही....चौबीसों घंटे मै इसके साथ रह चुकी हूँ....अपने बेटेसे आजतक ये बात कहनेका मुझे मौक़ा नही मिला.....मौक़ा तो मिला पर मैंने उसका इस्तेमाल नही किया.....' उन्हों ने औरभी बोहोत कुछ कहा....येभी के कभी आगे उसपे लांछन लगे और गर वो तुम्हें पता चले तो तुम उसका साथ देना...."अजीब इत्तेफाक रहा कि,बाद मे उन पती पत्नीसे, उन्हीं दोनोकी व्यस्तताके कारण मेरा अधिक संपर्क नही रहा....विमलाके पती अक्सर विदोशों मे भ्रमण करते रहे और मुझे उनसे अपने बारेमे कुछभी इस्तरह्से कहना अच्छा नही लगा....हमेशा लगा कि, ये मेरी गरिमा के ख़िलाफ़ है.....बीजीको गुज़रे अगले माह १५ साल हो जायेंगे.....जोभी हुआ ज़िन्दगीमे.....बोहोत से शिकवे रहे...मेरी अपनी बेटीको लेके सबसे अधिक.....जो मैंने उनसे कभी नही कहे....लेकिन आज उनकी बड़ी याद आ रही है...मेरी बेटीको उनसे आजभी सख्त नफ़रत है...पर आज शाम उसे मैंने ये बात बतायी....उसने कह दिया," अब क्या फायदा? अब तो कितनी देर हो चुकी....समय रहते उन्हों ने क्यों ये बात नही कही?? आज तुम मेरे आगे कितने ही स्तुती स्त्रोत गा लोगी, मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला.......जो तुम्हारे साथ या मेरे साथ होना था हो गया....मुझे ये सब बताओ भी मत माँ, मुझे उनपे और अधिक गुस्सा आता है..."मै खामोश हो गयी....मेरे पास उसे देनेके लिएभी कोई जवाब नही था......जैसे उनके मृत्यु के बाद महसूस हुआ...जैसे, जिस दिन विमला के पतीने मुझसे कुछ कहा, उसी तरह कल और आज या पता नही पिछले कितने साल ये महसूस हुआ....ज़िंदगी फिर एकबार आगे बढ़ गयी...छल गयी...मै देखती रही...कुछ ना कर सकी.....दोस्त दुश्मन बन गए....ग़लत फेहमियों का अम्बार खड़ा होता रहा....मै मेरे अपनों के लिए, जीवनकी क्षमा माँगती रही....हर बला आजभी मुझे स्वीकार है...गर मेरे अपने महफूज़ रहें......जानती हूँ, कि इस संदेश को शायद अपने मृत्यु के बाद अपने पती या बच्चों को पढने के लिए कहूँगी....मेरा हर पासवर्ड मेरी बेटी के पास है.....मेरे पती केभी पास है....आज सुबह ३ बजे मैंने अपना dying declaration भी पोस्ट कर दिया है....हर काम मै अपने इंस्टिक्ट से करती हूँ....उस वक्त अपने आपको चाह केभी रोक नही पाती...जैसे कोई अज्ञात शक्ती मुझे आदेश दे रही हो, जिसका मुझे पालन करनाही है...उसके जोभी परिणाम हो, भुगतने ही हैं....यही मेरा प्राक्तन है, जिसे कोई बदल नही सकता....ना अपनी राह बदल सकती हूँ, ना पीछे मुड़ के चल सकती हूँ...हर किसी की तरह आगेही चलना है....आगे क्या है वो दिख भी रहा है, लेकिन टाला नही जा सकता....पढने वालों को अजीब-सा लगेगा, लेकिन यही इस पलका सत्य है....
प्रस्तुतकर्ता shama पर 7:26 AM
इस घटनाके बाद दिन बीत ते गए....पतीने बता दिया की उन्हों ने किसी कारन मुम्बई मे पदभार सम्भालाही नही....उन दिनों वे तकरीबन एक माह बिना किसी पदके रहे....औए उनकी दोबारा अकादमी मेही पोस्टिंग हो गयी...एक हफ्तेके अन्दर पुलिस सायन्स कांग्रेस का आयोजन करना था...ओल इंडिया स्तर का आयोजन था....वोभी सफल हो गया...एक दिन मै किसी कारन, मेरे सहेली विमला और उसके पतीस मिलने उनके घर गयी थी...याद नही कि ,किस सन्दर्भ मे ये बात छिडी जो मै लिखने जा रही हूँ...जिसने मुझे स्तंभित कर दिया और इस्क़दर असहायभी....! लगा काश यही बात वो खुले आम, अपने मृत्यु के पूर्व मुझसेही नही, मेरे पतीसे भी कह देतीं....जो उन्हों ने विमला तथा उनके पतीसे कुछही रोज़ पहले कही थी...वो गिरीं उसके केवल ४ दिन पूर्व...!विमला तथा उनके पतीसे वे खुलके बात किया करतीं ....मेरी भी कोशिश रहती कि कुछ लोग हों जिनसे वे खुलके बतियाँ सकें....ऐसेमे अक्सर मै वहाँसे हट जाया करती...विमलाके पती मुझसे बोले, " जानती हो वे मुझसे क्या बोलीं???"" नही तो...! मुझे कैसे पता होगा ??"मैंने जवाब दिया...विमलाके पती बोले," उन्होंने कहा, कि, मैंने इस बहू के साथ पहले दिनसे बेहद नाइंसाफी की है....अपनेही बेटे का घर तोडके रख देनेमे कोई कसर नही छोडी....जब कि इसने मेरी सबसे अधिक खिदमत की.....इसके चरित्र पे एकबार मेरे बेटेने लांछन लगाया था....और मैंने डंके की चोटपे कहना चाहा था,कि मुझपे लांछन लग सकता है, पर इस औरत पे नहीं....सवाल ही नही....चौबीसों घंटे मै इसके साथ रह चुकी हूँ....अपने बेटेसे आजतक ये बात कहनेका मुझे मौक़ा नही मिला.....मौक़ा तो मिला पर मैंने उसका इस्तेमाल नही किया.....' उन्हों ने औरभी बोहोत कुछ कहा....येभी के कभी आगे उसपे लांछन लगे और गर वो तुम्हें पता चले तो तुम उसका साथ देना...."अजीब इत्तेफाक रहा कि,बाद मे उन पती पत्नीसे, उन्हीं दोनोकी व्यस्तताके कारण मेरा अधिक संपर्क नही रहा....विमलाके पती अक्सर विदोशों मे भ्रमण करते रहे और मुझे उनसे अपने बारेमे कुछभी इस्तरह्से कहना अच्छा नही लगा....हमेशा लगा कि, ये मेरी गरिमा के ख़िलाफ़ है.....बीजीको गुज़रे अगले माह १५ साल हो जायेंगे.....जोभी हुआ ज़िन्दगीमे.....बोहोत से शिकवे रहे...मेरी अपनी बेटीको लेके सबसे अधिक.....जो मैंने उनसे कभी नही कहे....लेकिन आज उनकी बड़ी याद आ रही है...मेरी बेटीको उनसे आजभी सख्त नफ़रत है...पर आज शाम उसे मैंने ये बात बतायी....उसने कह दिया," अब क्या फायदा? अब तो कितनी देर हो चुकी....समय रहते उन्हों ने क्यों ये बात नही कही?? आज तुम मेरे आगे कितने ही स्तुती स्त्रोत गा लोगी, मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला.......जो तुम्हारे साथ या मेरे साथ होना था हो गया....मुझे ये सब बताओ भी मत माँ, मुझे उनपे और अधिक गुस्सा आता है..."मै खामोश हो गयी....मेरे पास उसे देनेके लिएभी कोई जवाब नही था......जैसे उनके मृत्यु के बाद महसूस हुआ...जैसे, जिस दिन विमला के पतीने मुझसे कुछ कहा, उसी तरह कल और आज या पता नही पिछले कितने साल ये महसूस हुआ....ज़िंदगी फिर एकबार आगे बढ़ गयी...छल गयी...मै देखती रही...कुछ ना कर सकी.....दोस्त दुश्मन बन गए....ग़लत फेहमियों का अम्बार खड़ा होता रहा....मै मेरे अपनों के लिए, जीवनकी क्षमा माँगती रही....हर बला आजभी मुझे स्वीकार है...गर मेरे अपने महफूज़ रहें......जानती हूँ, कि इस संदेश को शायद अपने मृत्यु के बाद अपने पती या बच्चों को पढने के लिए कहूँगी....मेरा हर पासवर्ड मेरी बेटी के पास है.....मेरे पती केभी पास है....आज सुबह ३ बजे मैंने अपना dying declaration भी पोस्ट कर दिया है....हर काम मै अपने इंस्टिक्ट से करती हूँ....उस वक्त अपने आपको चाह केभी रोक नही पाती...जैसे कोई अज्ञात शक्ती मुझे आदेश दे रही हो, जिसका मुझे पालन करनाही है...उसके जोभी परिणाम हो, भुगतने ही हैं....यही मेरा प्राक्तन है, जिसे कोई बदल नही सकता....ना अपनी राह बदल सकती हूँ, ना पीछे मुड़ के चल सकती हूँ...हर किसी की तरह आगेही चलना है....आगे क्या है वो दिख भी रहा है, लेकिन टाला नही जा सकता....पढने वालों को अजीब-सा लगेगा, लेकिन यही इस पलका सत्य है....
प्रस्तुतकर्ता shama पर 7:26 AM
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