सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

सासू माँ...संस्मरण २

Saturday, February 21, 2009

इस घटनाके बाद दिन बीत ते गए....पतीने बता दिया की उन्हों ने किसी कारन मुम्बई मे पदभार सम्भालाही नही....उन दिनों वे तकरीबन एक माह बिना किसी पदके रहे....औए उनकी दोबारा अकादमी मेही पोस्टिंग हो गयी...एक हफ्तेके अन्दर पुलिस सायन्स कांग्रेस का आयोजन करना था...ओल इंडिया स्तर का आयोजन था....वोभी सफल हो गया...एक दिन मै किसी कारन, मेरे सहेली विमला और उसके पतीस मिलने उनके घर गयी थी...याद नही कि ,किस सन्दर्भ मे ये बात छिडी जो मै लिखने जा रही हूँ...जिसने मुझे स्तंभित कर दिया और इस्क़दर असहायभी....! लगा काश यही बात वो खुले आम, अपने मृत्यु के पूर्व मुझसेही नही, मेरे पतीसे भी कह देतीं....जो उन्हों ने विमला तथा उनके पतीसे कुछही रोज़ पहले कही थी...वो गिरीं उसके केवल ४ दिन पूर्व...!विमला तथा उनके पतीसे वे खुलके बात किया करतीं ....मेरी भी कोशिश रहती कि कुछ लोग हों जिनसे वे खुलके बतियाँ सकें....ऐसेमे अक्सर मै वहाँसे हट जाया करती...विमलाके पती मुझसे बोले, " जानती हो वे मुझसे क्या बोलीं???"" नही तो...! मुझे कैसे पता होगा ??"मैंने जवाब दिया...विमलाके पती बोले," उन्होंने कहा, कि, मैंने इस बहू के साथ पहले दिनसे बेहद नाइंसाफी की है....अपनेही बेटे का घर तोडके रख देनेमे कोई कसर नही छोडी....जब कि इसने मेरी सबसे अधिक खिदमत की.....इसके चरित्र पे एकबार मेरे बेटेने लांछन लगाया था....और मैंने डंके की चोटपे कहना चाहा था,कि मुझपे लांछन लग सकता है, पर इस औरत पे नहीं....सवाल ही नही....चौबीसों घंटे मै इसके साथ रह चुकी हूँ....अपने बेटेसे आजतक ये बात कहनेका मुझे मौक़ा नही मिला.....मौक़ा तो मिला पर मैंने उसका इस्तेमाल नही किया.....' उन्हों ने औरभी बोहोत कुछ कहा....येभी के कभी आगे उसपे लांछन लगे और गर वो तुम्हें पता चले तो तुम उसका साथ देना...."अजीब इत्तेफाक रहा कि,बाद मे उन पती पत्नीसे, उन्हीं दोनोकी व्यस्तताके कारण मेरा अधिक संपर्क नही रहा....विमलाके पती अक्सर विदोशों मे भ्रमण करते रहे और मुझे उनसे अपने बारेमे कुछभी इस्तरह्से कहना अच्छा नही लगा....हमेशा लगा कि, ये मेरी गरिमा के ख़िलाफ़ है.....बीजीको गुज़रे अगले माह १५ साल हो जायेंगे.....जोभी हुआ ज़िन्दगीमे.....बोहोत से शिकवे रहे...मेरी अपनी बेटीको लेके सबसे अधिक.....जो मैंने उनसे कभी नही कहे....लेकिन आज उनकी बड़ी याद आ रही है...मेरी बेटीको उनसे आजभी सख्त नफ़रत है...पर आज शाम उसे मैंने ये बात बतायी....उसने कह दिया," अब क्या फायदा? अब तो कितनी देर हो चुकी....समय रहते उन्हों ने क्यों ये बात नही कही?? आज तुम मेरे आगे कितने ही स्तुती स्त्रोत गा लोगी, मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला.......जो तुम्हारे साथ या मेरे साथ होना था हो गया....मुझे ये सब बताओ भी मत माँ, मुझे उनपे और अधिक गुस्सा आता है..."मै खामोश हो गयी....मेरे पास उसे देनेके लिएभी कोई जवाब नही था......जैसे उनके मृत्यु के बाद महसूस हुआ...जैसे, जिस दिन विमला के पतीने मुझसे कुछ कहा, उसी तरह कल और आज या पता नही पिछले कितने साल ये महसूस हुआ....ज़िंदगी फिर एकबार आगे बढ़ गयी...छल गयी...मै देखती रही...कुछ ना कर सकी.....दोस्त दुश्मन बन गए....ग़लत फेहमियों का अम्बार खड़ा होता रहा....मै मेरे अपनों के लिए, जीवनकी क्षमा माँगती रही....हर बला आजभी मुझे स्वीकार है...गर मेरे अपने महफूज़ रहें......जानती हूँ, कि इस संदेश को शायद अपने मृत्यु के बाद अपने पती या बच्चों को पढने के लिए कहूँगी....मेरा हर पासवर्ड मेरी बेटी के पास है.....मेरे पती केभी पास है....आज सुबह ३ बजे मैंने अपना dying declaration भी पोस्ट कर दिया है....हर काम मै अपने इंस्टिक्ट से करती हूँ....उस वक्त अपने आपको चाह केभी रोक नही पाती...जैसे कोई अज्ञात शक्ती मुझे आदेश दे रही हो, जिसका मुझे पालन करनाही है...उसके जोभी परिणाम हो, भुगतने ही हैं....यही मेरा प्राक्तन है, जिसे कोई बदल नही सकता....ना अपनी राह बदल सकती हूँ, ना पीछे मुड़ के चल सकती हूँ...हर किसी की तरह आगेही चलना है....आगे क्या है वो दिख भी रहा है, लेकिन टाला नही जा सकता....पढने वालों को अजीब-सा लगेगा, लेकिन यही इस पलका सत्य है....
प्रस्तुतकर्ता shama पर 7:26 AM

1 टिप्पणी:

  1. शमा जी ;
    आपने अपने संस्मरण को मेरे लिए ब्लॉग पर डाला । आपका धन्यवाद ।

    यूँ लगा
    लावा दहक रहा है ,अरमान जल रहे हैं
    छोटा है दिल मगर तूफ़ान पल रहे हैं

    चाहत में सितारों की कितने फना हुए
    सहरां भी ये शहर था निशान मिल रहे हैं


    लगता है जिन्दगी है जैसे कोई नदी

    कभी पत्थरों से जूझे कभी अपने ही बाँध लेते
    जब सूख जाती धारा मुंह फेर निकल लेते
    पर ,गहराई नहीं खोती बीते भले सदी
    लगता है जिन्दगी है जैसे कोई नदी

    घेरा कभी शहर ने ,कभी सूने चली अकेली
    किसी मोड़ खुशी मेले , कहीं गुमसुम सी एक पहेली
    चलती ही जाए ,कोई करे ,नेकी या फ़िर बदी
    लगता है जिन्दगी है जैसे कोई नदी

    आपके सुखमय भविष्य के लिए शुभ कामनाएं

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